शनिवार, 28 मई 2016

मन की बात

 इतना जान लें बस हमें कि हम कोई खिलौना नहीं ,
चोट लगती है हमें और दर्द भी होता है ।
हमारे भीतर भी भावनायें है जो आह बनकर निकलती हैं
टीस तब भी होती है ,जब मौसम सर्द होता है।

कलयुग में जन्म लिया है जरूर, पर सतयुगी विचार रखते हैं।
जिसे प्यार करते हैं उसे हृदय में छुपाकर रखते हैं।
जान उसपर निछावर है जो पाक दिल के मालिक हैं।
जो हमें प्यार करते हैं, हम भी बस उन्हें ही प्यार करते हैं।

इल्म है हमें कि कुछ ऐसे भी है जो हमसे द्वेष रखते हैं।
मुँह पर कहना तहजीब के ख़िलाफ़ हैं इसलिये पीठ पीछे हमारा जिक्र करते हैं।
महफ़िल में बढ़चढ़कर बोलना हमारी आदत नहीं ये दोस्त।
झूठ और आडंबर से खुद को कोसों दूर रखते हैं।

कलयुगी हथकंडे न चलाएं लोग, चाहत बस इतनी करते हैं।
इन सबसे खुदा बचाए हमें, बस इतनी प्रार्थना करते हैं।

शनिवार, 21 मई 2016

धुंध

किस ओर का रुख करूँ, जाऊँ किस ओर
मंजिल बड़ी ही दूर जान पड़ती है।

मन आज बड़ा ही विकल है, अकुलाहट का घेरा है
हवा भी आज न जाने क्यूँ ,बेहद मंद जान पड़ती है!

मेरे इर्द -गिर्द जो तस्वीरें हैं दर्द की,
ये आसमानी सितारों की साज़िश जान पड़ती है।

दूर तक पसरी हुई ये वीरानी,ये तन्हाईयाँ
सिर पर औंधी शमशीर जान पड़ती है।

आकाश भी आज साफ़ नजर नहीं आता,
मेरी किस्मत पे छायी ~धुंध जान पड़ती है।

यहाँ घेरा ,वहाँ घेरा,
हर ओर मकड़ जाल जान पड़ता है।

थम रही हैं सांसे,बदन पड़ रहा शिथिल,
मुझे ये मेरा आखिरी सफ़र जान पड़ता है।

मंगलवार, 22 मार्च 2016

होली


रंगों का त्योहार है होली,
खुशियाँ लेकर आता है।
हर एक घर ,हर गली, मोहल्ला,
रंगों से भर जाता है।

मस्ती में सब झूमते रहते,
भंग का रंग चढ़ जाता है।
बैर भाव सब भूल हैं जाते ,
दुश्मन को दोस्त बनाता है।

पिचकारी से रंग जब निकले ,
सब पर मस्ती छाती है।
ओढ़ चुनरिया सात रंग की,
माँ वसुधा मुस्काती है।

विरह की पीड़ा लिए विरहिणी,
मन ही मन घबराती है।
अबहु तक मेरे पिया न आये,
यह टीस उसे छल जाती है।

फ़ाग कहीँ यह बीत न जाए,
ये पीर उसे सताती है।
याद लिये अपने प्रिय की,
सुख - सपनों में खो जाती है।

होली ऐसा पर्व है प्यारा,
सबको एक बनाता है।
हो  हिन्दू ,हो सिख या मुस्लिम,
हर कोई इसे मनाता है।

लाल, गुलाबी, नीले, पीले,
रंग जब सब पर पड़ते हैं।
मिट जाती है दिलों की दूरी,
सब अपने से लगते हैं।

सुधा सिंह