शनिवार, 15 अगस्त 2015

बेबसी

खाली पेट ,खाली जेबे,
हर शख़्श यहाँ मज़बूर है।
ढेरों सपने लेकर जन्मा,
फिर भी मंजिल दूर है।
थाली में न दाल, न रोटी
न सेब ,न ही अंगूर है
हर कोशिश नाकाम हो रही,
पर जीने को मजबूर हैं।
आत्महंता, कृषक बन गए
नेता अपने में चूर हैं।


निराश हो गई युवा पीढ़ी,
बन गई जैसे मूढ़ है।
कई नशे के आदी हो गए,
कईयो को चढ़ा सुरूर है।
राजकरण व्यापार बन चला,
नेता इसमे मशगूल हैं।
नीव देश की हो गई खोखली,
कोई दीमक लगा जरूर है।
जन्मा भारत की धरती पर
क्या यही मेरा कसूर है?






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